आज भी आदिवासी है मजबूर

विश्व प्रसिद्ध पातालकोट तामिया के आदिवासी पलायन को मजबूर

सरकारी दावे आंकड़े आदिवासी अंचल में खोखले साबित हो रहे

CCN/छिंदवाड़ा
तामिया/छिंदवाड़ा से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर बसा हुआ पातालकोट जिसे देश ही नहीं पूरी दुनिया जानती है पतालकोट  की र्सुंदरता और यहां के वातावरण को देखने के लिए पूरे देश के लोग आते हैं और यहां की खूबियां अपने-अपने क्षेत्रों में जाकर बांटते हैं पातालकोट जब भी कोई नेता आता है तो बड़े-बड़े वादे को छोड़ जाता है की हम ओ सारी सुविधाएं दे रहे हैं जिससे पातालकोट के लोगों को लाभ मिलेगा परंतु यह सब नेताजी के भाषण और वादों में सिमट के रह जाता है
पातालकोट के सुंदरीकरण के लिए और यहां के लोगों को रोजगार देने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं परंतु विकास कहीं नजर नहीं आता आखिर क्या कारण है कि यहां के आदिवासी लोगों को अपने ही गांव को छोड़कर शहरों की ओर काम के लिए रोजगार के लिए जाना पड़ रहा है ।

पातालकोट के आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासियों को नहीं मिल रहा रोजगार इसके लिए उन्हें बाहर जाकर मजदूरी करना पड़ रह है सरकार के दावे पूरे फेल होते नजर आ रहे हैं सरकार दावे करती है कि तामिया विकासखंड के आदिवासी क्षेत्रों में करोड़ों रुपए की लागत की योजनाएं आती है लेकिन यह योजनाएं कागजों में ही सीमित होती है ना ही पंचायत जनपद पंचायत किसी भी योजनाओं के द्वारा आदिवासियों को किसी प्रकार का योजना का लाभ नहीं मिल पाता है ना ही किसी भी प्रकार की उनको स्थानी लेवल पर रोजगार प्राप्त होती है रोजगार न मिलने के कारण आदिवासी अपने परिवार चलाने के लिए पलायन करने को मजबूर होते हैं सरकार भले ही दावे करती है आदिवासी क्षेत्रों में हमने एक कर दिया लेकिन केवल कागजों में ही यह होता है स्थानी लेवल में किसी को रोजगार नहीं मिलता इसलिए लोग बाहर जाकर मजदूरी करने के लिए मजबूर होते हैं जनप्रतिनिधि भी चुनाव आते ही वोट बैंक की राजनीति करते हैं और आदिवासियों को लुभाने का काम करते हैं चुनाव जीतने के बाद ना ही क्षेत्र में आते हैं ना ही इनको रोजगार प्रदान करवाते हैं आदिवासी क्षेत्र के विकास के लिए करोड़ों रुपए आते हैं लेकिन पता नहीं वह कहां चले जाते हैं अगर स्थानी लेवल पर यह सब हो तो बाहर जाकर मजदूरी करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

तामिया विकासखंड की सभी गांवों के आदिवासी परिवार में हर घर से लोग काम करने के लिए होशंगाबाद रायसेन पिपरिया नरसिंहपुर फसल की कटाई करने के लिए हर साल बड़ी संख्या में पलायन करते हैं। नौजवान युवक लोग भी काम के लिए बड़ी बड़ी कंपनी मुबई हैदराबाद दिल्ली बेंगलुरु नागपुर की कंपनी में बडी संख्या में काम करने जाते हैं। यहां स्थानीय लेवल पर काम ना मिलने के कारण उन लोगों को काम की तलाश में बाहर जाना पड़ता हैं जनप्रतिनिधि भी इस ओर नहीं देती ध्यान नाही पंचायत जनपद पंचायत द्वारा इन्हें किसी भी प्रकार की रोजगार उपलब्ध नहीं की जाती है।
तामिया के आदिवासी अंचल में लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता है कभी-कभी देखने में आता है कि लोगों को अगर रोजगार गारंटी में काम मिलता है तो उसका भी भुगतान नहीं होता है और अगर किसी के द्वारा इन लोगों को कंपनी में ले जाया जाता है तो उसकी भी पेमेंट नहीं दी जाती है बहुत बार तामिया के क्षेत्र में ऐसी घटना हो चुकी है। जिसमें एजेंट द्वारा आदिवासियों को ले जाकर बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम कराया जाता है। काम होने के पश्चात उनको उनकी मजदूरी तक नहीं दी जाती है लेकिन मजदूरों द्वारा शिकायत करने पर भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं होती है साल में कई बार फसल की कटाई करने के लिए होशंगाबाद पिपरिया नरसिंहपुर रायसेन बरेली के खेतों में काम करने जाते हैं। तामिया पातालकोट के क्षेत्र में पलायन की यह बहुत बड़ी समस्या है। गांव में जाकर देखा जाए तो लोगों को किसी भी प्रकार का रोजगार नहीं मिलता है जिसके कारण आदिवासी पूरे परिवार सहित काम की तलाश में बाहर निकल जाते हैं। सरकार को आदिवासियों के लिए स्थानी लेवल में कार्य करना चाहिए जिससे लोगों को अपने गांव आसपास में ही रोजगार मिल सके जिससे उन्हें रोजगार के लिए बाहर जाना ना पड़े।

अब धीरे-धीरे पातालकोट का नाम सिर्फ कागज और नेता जी के वादों पर है वास्तविक में यहां आज तक किसी तरह का विकास नजर नहीं आता यहां लोग आते हैं पिकनिक मनाते हैं बड़े बड़े वादे करते हैं और चले जाते हैं वास्तविक में यहां आज भी लोग रोजगार के लिए भटक रहे हैं, तरस रहे हैं
             पातालकोट तामिया में करोड़ों रुपए के एनजीओ प्रोजेक्ट सिर्फ कागज के पन्नों पर काम करके चले गए पर लोगों को आज तक भी रोजगार नहीं मिल पाया जिसके कारण यहां के ग्रामीण लोगों को शहरों की ओर रोजगार के लिए जाना पड़ रहा है
जब भी चुनाव का दौर आता है कोई ना कोई नेता पातालकोट के विकास के लिए वादा करके चला जाता है फिर वह नेता तब ही वापस आता है जब उसे फिर से आदिवासियों की याद आती है कि हमें इन वोटों की भी जरूरत है जिसके कारण वह राजनीति में बरकरार रह सके क्यों नहीं होता पातालकोट पर विकास कार्य सिर्फ क्यों रह जाता है कागजों के पन्नों पर सिमट कर जब सरकार कहती है कि हम करोड़ो रुपए पातालकोट के सौंदर्यीकरण और विकास के लिए लगा रहे हैं तो यह नजर क्यों नहीं आता

.क्यों लोग आज भी परेशान हैं अपनी समस्याओं को लेकर

क्यों लोग परेशान हैं रोजगार को लेकर

क्यों लोग परेशान हैं मोबाइल नेटवर्क को लेकर

क्यों लोग परेशान हैं स्वास्थ्य विभाग को लेकर

क्यों लोग परेशान हैं शिक्षा क्षेत्र में
सरकार कहती है कि हमने पतालकोट तामिया पर लाखों रुपए खर्च किए तामिया पातालकोट के आदिवासियों के विकास के लिए पर वास्तविक में यहां ऐसा कोई विकास नजर नहीं आता बड़े-बड़े एनजीओ प्रोजेक्ट आते हैं और कागज में सिमट कर रह जाते हैं ऐसा क्यों…….प्रीतम सिंह की रिपोर्ट