मंदसौर में रावण को जमाई राजा मानकर करते हैं पूजा

Dussehra 2021: रावण की प्रतिमा के पैर में लच्छा बांधकर करते हैं पूजा, फिर शाम को माफी मांगकर करते हैं प्रतीकात्मक वध।

CCN/ डेस्क / मध्यप्रदेश /मंदसौर। मंदसौर शहर की घनी बस्ती वाले पुराने क्षेत्र खानपुरा में 400 साल पुरानी रावण की प्रतिमा है। रावण को जमाई राजा मानकर दशहरे (15 अक्टूबर) को नामदेव छीपा समाज पूजा-अर्चना करेगा। ऐसी प्रचलित मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी का पीहर मंदसौर में ही था। इसके चलते खानपुरा क्षेत्र में रावण को जमाई राजा मानकर ही पूजा जाता है। समाज के लोग ढोल बाजे के साथ धूमधाम से रावण प्रतिमा के सामने पहुंचते हैं और फिर पूजा-अर्चना कर पैर में लच्छा बांधते हैं। शाम को माफी मांगकर प्रतीकात्मक वध भी करते हैं।

रावण को जमाईराजा मानने की मान्यता के कारण ही नामदेव समाज सहित कुछ अन्य समाज की बुजुर्ग महिलाएं आज भी रावण की प्रतिमा के सामने से निकलने समय घूंघट निकालती है। हालांकि इतिहासकार मंदोदरी के मंदसौर के रिश्ते के किसी भी तरह के साक्ष्य होने की बात से इंकार करते रहे हैं। पर रावण की प्रतिमा मंदसौर में क्यों बनी इसके पीछे भी वे कोई उचित कारण नहीं बता पाते हैं। रावण प्रतिमा के पीछे ही एक लंका रुपी भवन भी बना हुआ है। रावण वध के बाद नामदेव समाज के अधिकांश लोग वहां भी पहुंचते हैं।

सुबह करेंगे पूजा अर्चना

दशहरे (15 कटूबर) पर सुबह नामदेव छीपा समाज के पुरुष व महिलाए खानपुरा स्थित बड़ा लक्ष्मीनारायण मंदिर से ढोल के साथ रावण प्रतिमा के यहां पहुंचकर पूजा-अर्चना करेंगे। नामदेव समाज के पूर्व अध्यक्ष राजेश नामदेव ने बताया कि समाज के लोग रावण बाबा से पूरे क्षेत्र को बीमारी व महामारी से दूर रखने के लिए प्रार्थना करते हैं और इसीलिए रावण प्रतिमा के पैर में लच्छा भी बांधते हैं। शाम को गोधुली वेला में रावण प्रतिमा की पूजा-अर्चना कर माफी मांगेंगे और प्रतिमा के गले में पटाखे की लड़ लगाकर प्रतीकात्मक वध करेंगे।

मंदसौर को जोड़ते हैं मंदोदरी से

बुजुर्ग मंदोदरी से शहर के रिश्ते का सबसे बड़ा प्रमाण देते हुए उल्टा प्रश्न खड़ा करते हैं कि इस शहर का नाम मंदसौर क्यों हुआ? मंदोदरी के रिश्ते के कारण ही यहां का नाम मंदसौर है। हालांकि कही भी उल्लेख नहीं होने के कारण धार्मिक क्षेत्रों से जुड़े लोग व इतिहासकार इसे नहीं मानते हैं।