दशहरा विशेष: सतना के कोठी में रहते हैं रावण के वंशज, यहां रावण दहन नहीं, बल्कि 300 साल से हो रही पूजा…
सतना:- बहुत कम लोगों पता होगा कि सतना में एक ऐसा कस्बा है जहां रावण के वंशज निवास करते हैं। कोठी में विजय दशमी पर रावण का दहन नहीं बल्कि पूजा की जाती है। यह सिलसिला करीब 300 साल पूर्व से चला आ रहा। कोठी थाना परिसर में रावण की प्रतिमा भी बनी है।
दरअसल, हमारा देश विविध संस्कृतियों का समागम है। वहां अनेक धर्म-मत-मतांतरों को मानने वाले लोग रहते हैं। ऐसी ही एक हकीकत जानकर आप जानकर हैरान हो जाएंगे। विजयदशमी के मौके पर देशभर में जहां रावण के पुतले जलाए जाते हैं, वहीं कोठी कस्बे में रावण को जलाया नहीं जाता बल्कि उसकी पूजा की जाती है। विजयादशमी के मौके पर रावण की पूजा एक दो साल से नहीं बल्कि पीढिय़ों से एक परिवार करता आ रहा है।
ऐसी है मान्यता
रावण के पुजारी पं. रमेश मिश्रा ने बताया कि कोठी रियासत के राजा सीता रमण सिंह जूदेव द्वारा तीन सौ साल पहले कोठियार नदी के पास (वर्तमान में पुलिस थाना परिसर) रावण की प्रतिमा बनवाई गई थी। ठीक सामने ही भगवान श्रीराम का चबूतरा भी बनवाया गया था। वहां रामलीला का मंचन किया जाता था। रामलीला मंचन के दौरान विजयदशमी के दिन भगवान श्रीराम द्वारा चबूतरे से रावण पर बाण चलाया जाता था। रामलीला को देखने आसपास के 50 गांवों के लोग आते थे।
जय लंकेश का उद्घोष करते पहुंचते हैं
यहां भगवान राम के बाद रावण की भी पूजा की जाती है। पं. रमेश ने बताया कि रनेही हाउस बस स्टैंड से ढोल-नगाड़ों की धुन पर जय लंकेश और हर-हर महादेव उद्घोष करते हुए डेढ़ से दौ सौ लोग पुलिस थाना परिसर पहुंचते हैं। वहां पर रावण की प्रतिमा स्थापित है। सबसे पहले रावण की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है। जनेऊ अर्पित की जाती है। शुद्ध देशी घी के जले दीपक से रावण की आरती की जाती है। फिर प्रसाद चढ़ाकर श्रद्धालुओं को वितरण किया जाता है।
40 साल से कर रहा हूं पूजा
पं. रमेश मिश्रा बताते हैं कि मैं दशहरे के दिन चालीस साल से लगातार रावण की पूजा कर रहा हूं। मेरे दादा पं. श्यामराम मिश्रा राजदरबार के पुजारी थे। वे भी हर साल रावण की पूजा करते थे। पूर्वजों का कहना था कि रावण गौतम ऋषि के नाती और विश्वश्रवा के पुत्र थे। हमारा कुल गोत्र भी गौतम है। हम रावण के वंशज हैं। रावण महादेव के अनन्य भक्त, विद्वान, त्रिकालदर्शी थे। रावण ने ही भगवान महादेव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्त्रोत की रचना की थी। इस वजह से हमारी पीढिय़ां रावण की पूजा करती आ रही हैं।