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वन मंत्री विजय शाह को जिलों में रहने के लिए बंगला चाहिए। इसके चलते इन्होंने जबलपुर, इंदौर और अपने गृह जिले खंडवा में सरकारी बंगले को अपने नाम कर लिया है। ये सभी बंगले अधिकारियों के लिए बनाए गए हैं।

भोपाल :-  वैसे तो सरकार ने अपने सभी मंत्रियों को राजधानी में रहने के लिए बड़ा बंगला दे रखा है। इन बंगलों के साथ कार्यालय भी हैं। अगर वे कहीं दौरे पर जाते हैं तो उनके रहने की व्यवस्था कलेक्टर जिलों में बने सर्किट हाउस में करते हैं। लेकिन, वन मंत्री विजय शाह को सर्किट हाउस में रहना पसंद नहीं है। इन्हें जिलों में रहने के लिए बंगला चाहिए। इसके चलते इन्होंने जबलपुर, इंदौर और अपने गृह जिले खंडवा में सरकारी बंगले को अपने नाम कर लिया है। ये सभी बंगले अधिकारियों के लिए बनाए गए हैं।

जबलपुर में जिस बंगले को खाली कराया गया है, वो भोपाल में पदस्थ एपीसीसीएफ अजीत श्रीवस्तव के नाम से आवंटित था। उनसे ये बंगला खाली कराया गया है। बताया जाता है कि, राज्य वन अनुसंधान केंद्र परिसर स्थित ये वीवीआइपी बंगला मंत्री शाह को छह माह से ज्यादा समय से आवंटित है। जबकि, खंडवा जिले में बंगला सीसीएफ से खाली कराया गया है। बंगला सीसीएफ के नाम से आवंटित है। इंदौर में डीएफओ स्तर के अधिकारियों के लिए जो बंगला आरक्षित था, वो अब मंत्री विजय शाह के लिए है।

बंगले वन विभाग के, अनुमति की जरूरत नहीं

ये सभी बंगले वन विभाग के हैं, जिससे मंत्री को इन बंगलों को अपने लिए आरक्षित करने में सरकार से कोई अनुमति नहीं लेनी पड़ी। मंत्री जी नाराज न हों, इसके चलते अधिकारी उस बंगले को दस्तावेजों में खाली लिखकर अपने आप को जांच पड़ताल से बचा रहे हैं। इसके अलावा, भोपाल और इंदौर में मंत्री के नाम पर दो से तीन कमरे हमेशा बुक रहते हैं।

स्टाफ की भी नियुक्ति

बंगलों में स्टाफ की भी नियुक्ति की गई है। जंगलों में काम करने वाले अमले को इन बंगलों में लगाया गया है, जबकि दस्तावेजों में अधिकारियों ने इन कर्मचारियों की ड्यूटी जंगलों की सुरक्षा करना बताया है। बताया जाता है कि, मंत्री शाह लंबे समय से जबलपुर सर्किल में ज्यादा दौरे करते रहे हैं। वो कई बार जबलपुर जिले के पास एक गेस्ट हाउस में रुके भी हैं।

बंगलों की मरमम्त पर लाखों खर्च

मंत्री को खुश करने के लिए अधिकारियों ने इन बंगलों की मरम्मत में लाखों रुपए खर्च किए हैं। इंटीरियर डेकोरेशन भी किया है। इसके अलावा एक रेस्ट हाउस में जो भी सुविधाएं मिलनी होती है, उन्हें भी उपलब्ध करा दिया गया है। हालांकि, ये राशि किस मद से खर्च की गई है, इसका कोई लेखा-जोखा तैयार नहीं किया गया है। राशि खर्च करने से पहले विधिवत अनुमति भी नहीं ली गई है।

 

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