चातुर्मास के लिए स्थानीय दयोदय तीर्थ गोशाला में विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा..

जबलपुर। चातुर्मास के लिए स्थानीय दयोदय तीर्थ गोशाला में विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि हमारी स्थिति यह है कि हम खुद को सम्भाल नहीं पाते और कहते हैं कि हमने दूसरों को भी सम्भाल रखा है। यही कहते हुए हम दूसरों के काम में भी अड़ंगा डालते हैं। हमें ध्यान से सुनने की आदत डालनी चाहिए। सुनने के साथ सीखना भी चाहिए। आपको अपने ज्ञान का भी अहंकार नहीं करना चाहिए। अहंकारी टिक नहीं सकता, टूट जाता है।
छोटा पेड़ झुक गया, नहीं टूटा – उन्होंने कहा कि एक विशाल वृक्ष था जिसमें फल भी लगे थे। उसकी जड़ें चारों ओर फैली थीं और वर्षों से अपना स्थान बना चुकी थीं। ग्रीष्म ऋतु में वृक्ष की छांव में पथिक और पशु-पक्षी सभी आश्रय पाते थे। वर्षा ऋतु आई। तेज आंधी आनी शुरू हो गई। वृक्ष की शरण में अनेक पथिक खड़े हो गए। लेकिन, आंधी तेज होती गई और पहले वृक्ष तन कर खड़ा रहा। झुका नहीं, लेकिन आंधी के जोर के सामने वह धराशाई हो गया। पथिकों ने भाग कर अपनी जान बचा ली और पेड़ गिर गया। वहीं एक छोटा कोमल तने का वृक्ष भी लगा था, जो आंधी आने के समय धरती की ओर झुक गया। आंधी चली गई और वह छोटा सा वृक्ष वापस अपने तने पर खड़ा हो गया।
पहले बड़ा वृक्ष अहंकार से कहता था कि मेरे से ज्यादा बड़ा और बलशाली कौन हो सकता है। छोटे तने वाले वृक्ष को कई बार अपमान महसूस होता था। आंधी जाने के बाद छोटे वृक्ष ने बड़े वृक्ष से कहा कि अब तुम भी मेरी तरह उठकर खड़े हो जाओ। छोटे वृक्ष ने कहा कि मैं आपका उपहास नहीं उड़ा रहा, लेकिन जब कभी आवश्यक हो तो कमर झुकानी चाहिए।
सबसे बड़ा शत्रु प्रमाद
आचार्यश्री ने कहा कि हमेशा अहंकार के साथ रीढ़ कड़ी रखने से टूट जाती है। छोटे वृक्ष ने कहा कि आपके पास तो बड़ी-बड़ी जड़ें हैं। आप धरती का ज्यादा दोहन भी करते हो। तब बड़े वृक्ष ने कहा कि हम राहगीरों को छाया प्रदान करते हैं, इसीलिए ज्यादा ग्रहण करते हैं। लेकिन, ध्यान रखना होगा कि हमारी अकड़ जब निकल जाती है जब हमें महसूस होता है कि हम से भी ज्यादा बलशाली हमारे सामने है। हमारा सबसे बड़ा शत्रु प्रमाद है। हम बड़े वृक्ष से सीख ले सकते हैं, जो टूट गया लेकिन झुका नहीं। अहंकार ने उसे खत्म कर दिया। छोटे पौधे हमें पुरुषार्थ की शिक्षा देते हैं।

By Corn City

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