अग्नि की उपासना करने वाले साधक के बनाए गए उज्जवल भविष्य की कल्पना और प्लानिंग सारी नष्ट हो जाती है। 

इसी प्रकार से निरंजन वन में घूमने वाला ,वहीँ निवास करने वाले , निर्वस्त्र पुरुष और शून्य के उपाशक पर भूलकर भी विश्वास नहीं करना चाहिए। 

जो शून्य की उपासना करता है , जो खाली आकाश को टक-टकी लगाकर निहारता रहता हो वह साधक भी उत्तम नहीं माना जाता है ।  

जो इसप्रकार की साधा का सारा अपने जीवन में लेता है ,वह सदैव दुखी और परेशां रहता है। 

इसी प्रकार से एक काळा विन्दु को निहारते रहने वाला मनुष्य से भी सदैव दूर ही रहना चाहिए। 

इनसे अपने कामो की सफलता और असफ़लत के विषय में नहीं पूछना चाहिए तथा  इनसे सदैव अपने भविष्य के प्लान को छुपाय रखना चाहिए।

यद्दी कोई व्यक्ति इस प्रकार की साधना से जुड़ा हो तो शीघ्र इन साधनाओं का त्याग कर सही साधना विधि और पद्धति का सहरा लेना चाहिए। 

……..श्री तत्त्ववेत्ता परमहंस जी 

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