रोशनी श्रीवास( पुलिस लाइन )छिंदवाड़ा की कलम से…

अग्निकुंड से जन्मी थी
धधकती ज्वाला सी तेज वो
पांचाल देश की राजकुमारी
यज्ञासेनी पांचाली थी
चेहरे में था तेज जिसके
सुन्दर सी वो नारी थी
आत्मसम्मान था जिसका सबसे बढ़कर
मचा दिया विध्वंश जमकर
5 पतियो की प्यारी वो
इंद्रप्रस्थ की रानी थी
जब आन पड़ी थी लूटने
तब मिन्नते की हजार सबसे
5 पतियों की संगनी वेश्या से कम नहीं
सूतपुत्र कर्ण से यह भी कहलाई थी
ये कैसी थी दुयथ सभा
जहां दाव लगा दिया सम्मान मेरा
ये कैसी है व्यथा मेरी
मैं किसे सुनाऊ
गिरधारी अब तुम आ जाओ
अब तुम हो मेरी आखिरी आंस
बचा लो मेरी लाज
अब मेरा ना कोई सहारा
चिर बचा लो मेरा
तभी बोलता पापी दुर्योधन
दासी..
आसान लो मेरी जंघा पर
क्रोध की धधकती ज्वाला से वो कहती
ये कैसी तेरी अभिलाषा
केश मेरा है खींचता दुस्ट दुशासन
कुछ भी ना कर पाई
क्युकी वैभव से वो हीन हुई
चिर मेरे है खींचता दुस्त पापी दुशासन
हाथ जोड़कर पुकारती वो वासुदेव नारायण..
आया प्रकाश के पुंज सा जिसने बचा ली थी मेरी लाज
लगा हाफने खींच खींच वो
पांचाली के चिर को
अग्निसुता का चीरहरण करना
अब क्षमता से बाहर हुआ
जोर जोर से हुंकारी ती
भूल गई थी सारी मर्यादा
अंधी हो गई है क्या राज्यसभा
जो भूल गए पूरी शिक्षा
आंखो से बहता निर्जर और
बोल पड़ी धर्त राष्ट्र पितामह और गुरु द्रोण से
ये कैसी कुरूवंश की मर्यादा
जहां कुल की वधू ही मलिन हुई
अपमान हुआ था नारी का
जिसका परिणाम था महाभारत
जय बोलो कृष्ण गिरधारी की ओर जय बोलो पवित्र यज्ञासैनी की…
रोशनी श्रीवास 🖋️