वनाधिकार कानून के दावों के चार बार के परीक्षण में 1682 केस निरस्त

छिंदवाड़ा:- अंग्रेजों के समय या फिर आजादी की शुरुआत के जंगल की जमीन का रिकार्ड किसी से भी मांगोगे तो शायद ही कोई मिलेगा। ऐसे दस्तावेजों की कमी के चलते वनभूमि कब्जे के 925 रहवासियों के दावे निरस्त कर दिए गए। सामान्य श्रेणी के इन दावेदारों को चार बार मौका दिया गया लेकिन उन्होंने ये प्रशासन और वन विभाग के समक्ष पेश नहीं किया। अब इन दावों की फाइलों को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है।

जनजातीय कार्य विभाग की जानकारी के अनुसार दो साल पहले राज्य सरकार की विशेष योजना के तहत वनभूमि के निरस्त दावों की फाइलों को पुन: खोला गया था। जिसमें छिंदवाड़ा जिले के 2821 दावों का पुन: परीक्षण वन विभाग, राजस्व और जनजातीय विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों से कराया गया। जिसमें से केवल 1139 दावों को ही मान्य किया गया और कलेक्टर के दस्तखत से उनके वनभूमि पट्टे जारी किए गए। शेष 1682 निरस्त दावों में सबसे ज्यादा 925 ऐसे लोगों के थे, जो सामान्य वर्ग से आते हैं जिनका वनभूमि पर कब्जा रहा। ये लोग वनाधिकार कानून के नियम के तहत 75 साल का रिकार्ड पेश नहीं कर पाए। इनके पास अंगे्रजों के जमाने का कोई कागज का पुर्जा भी नहीं मिल पाया। जिससे वन भूमि का पट्टा उन्हें नहीं मिल सका।
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तामिया, परासिया और जुन्नारदेव में ज्यादा कब्जा
वनभूमि पर सामान्य वर्ग का कब्जा को देखा जाए तो तामिया, परासिया, न्यूटन, अंखावाड़ी, सीताडोंगरी तामिया और जुन्नारदेव के पास कुकरपानी और सांगाखेड़ा में लोगों ने जंगलों की जमीन पर अतिक्रमण कर मकान बना लिए तो कहीं खेती के लिए जमीन तैयार कर ली। ये लोग सालों से यहां रह रहे हैं। सिर्फ पुराने दस्तावेज न होने से उन्हें अमान्य कर दिया गया है।

वर्ष 2005 के बाद 214 का अतिक्रमण
वन विभाग की पड़ताल में पाया गया कि वर्ष 2005 के बाद कुछ आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोगों ने जंगल की जमीन पर पट्टे के लालच में कब्जा कर लिया। वन विभाग द्वारा गूगल मेप के जरिए आंकलन किया गया तो उनके चिन्हित कब्जे में 2005 के पहले जंगल पाया गया। उन्हें दावे भी निरस्त कर दिए गए। हालांकि आदिवासी वर्ग से केवल 50 साल का रिकार्ड मांगा गया गया था।

यह भी रिकार्ड..15 साल में 10 हजार से ज्यादा पट्टे
आदिम जाति कल्याण विभाग की मानें तो अनुसूचित जाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम 2006 लागू होने के बाद वनभूमि पर 50 साल से काबिज वनवासियों को चार हैक्टेयर जमीन दिए जाने का प्रावधान के तहत अब तक व्यक्तिगत स्तर पर 9157 और सामुदायिक स्तर पर 1525 वनभूमि दावे स्वीकृत कर पट्टे वितरित किए गएं हैं।
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इनका कहना है…
वनाधिकार के निरस्त दावों में से 1139 दावों को मान्य कर पट्टे जारी किए गए हैं। यह सहीं है कि सामान्य वर्ग के लोग वनाधिकार के 75 साल के रिकार्ड पेश नहीं कर पाए।
-एनएस बरकड़े, सहायक आयुक्त जनजातीय कार्य विभाग।

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