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“अगर स्त्री का कोई घर नहीं, तो उसके बिना भी कोई घर नहीं”: प्रो. सिंह

“स्त्री कायनात के केंद्र में है, उसकी नाराजी से पुरुष सत्ता के किले ढह जाएंगे”: प्रो. सिंह

“स्त्री में नए पुरुष को गढ़ने की नियामत है” प्रो. सिंह

“स्त्री पैदा नहीं होती बल्कि निर्मित की जाती है”: प्रो. सिंह

छिंदवाड़ा/तामिया:- तामिया कॉलेज में महिला सुरक्षा और जागरूकता विषय पर आयोजित राष्ट्रीय वेबीनार को मुख्य वक्ता बतौर बोलते हुए चांद कॉलेज के प्रेरक वक्ता प्रो.अमरसिंह ने कहा कि स्त्री में नए पुरुष को गढ़ने की नियामत है। स्त्री पैदा नहीं होती बल्कि समाज द्वारा निर्मित की जाती है। स्त्रियों को अपने विशेषाधिकारों को तार्किकप्राणी बनकर उत्कृष्ट वर्जन में जीना चाहिए। साहस महिलाओं की सबसे बड़ी सुरक्षा है। स्त्री को अपने खास स्वरूप में जीने का उत्सव मनाना चाहिए। नारी पुरुष सत्ता की संरक्षक होती है, सम्पूर्ण कायनात के केंद्र में है, उसकी नाराजगी से सारे किले ढह जाएंगे। स्त्री को स्त्री होने की हीन भावनानहीं अपितु इंसान होने का गर्व होना चाहिए। अगर स्त्री का कोई घर नहीं तो स्त्री के बिना भी कोई घर नहीं।महिला को खैरात नहीं बल्कि स्वयं को साबित करने के अवसर चाहिए। महिलाओं को औरों से आत्मविस्तार का स्थल चाहिए। स्त्री के जिंदा रहते संभावनाओं का मर जाना जघन्य पाप है। स्त्री वक्त की नायिका बने न कि दोयम दर्जे की नागरिक। महिलाओं का सेवा भाव उनकी ताकत बने और दूसरों की नकारात्मक प्रतिक्रियाएं को सुनकर स्वयं को कमजोर न करें। महिलाएं अपने वजूद को जगाएं न कि दूसरों की वैचारिक जड़ता का शिकार बनें।उनको असाधारण बनने से स्वयं के अलावा उन्हें कोई नहीं रोक सकता है। प्रबंधन में महिलाओं का कोई सानी नहीं है। महिलाओं को दुनिया से डरने नहीं, बल्कि समझने की जरूरत है। जब महिलाओं को नकारा जाए, तब उन्हें अपनी बेहतरी के विकल्प तलाशने चाहिए। स्त्री सबके निशाने पर रहती है, पर विचलित नहीं होती। लेकिन जब पुरुष स्त्री के निशाने पर होता है तो हाहाकार मच जाता है। नारी निरंतरता की प्रतीक है, बेशुमार रचनाधर्मी है और सृष्टि के रहस्यमयी मर्मों को सबसे पहले भांप लेती है। स्त्री से लाभान्वित पुरुष का स्त्री के साथ कृतघ्नता से पेश आना अशोभनीय है। प्राचार्य डॉ. महेंद्र गिरि ने कहा कि समावेशी विकास सिर्फ चुनिंदा लोगों से नहीं होगा। इसमें स्त्री की भागीदारी परमावश्यक है। पितृसत्ता की जंजीरें अब टूट रही हैं। प्रो. विजय सिंह सिरसाम ने कहा कि अब नारी का भविष्य बराबरी के हक में है। इक्कीसवीं सदी की स्त्री को मदद की नहीं बल्कि मौकों की, चैरिटी की नहीं बल्कि चांस की और कमजोरियों की नहीं बल्कि दक्षता के सद्गुणों की कामना है। प्रो. मालती बनारसे ने कहा कि स्त्री निरंतरता की पोषक है। हमारा बचे रहना इसलिए है कि स्त्री हमें बचाए रखना चाहती है। अतः पुरुष स्त्री के सम्मान के प्रति सचेत रहे। महिला सुरक्षा हिम्मत से सामना करने में है, जागरूकता में है और स्वयं को निपुण बनाकर विषय विशेषज्ञ बनने में है, किसी से सुरक्षा की भीख मांगने में नहीं।

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